शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2024

कल,आज और कल

छा रहा कुहासा फिर
सभ्यताएं सिहर रही 
नव कोपलें पीत हो रही 
दरख्त खड़े असहाय हैं

कराहती हर दिशाएं
हवाएँ बिषैली बह रही 
फूलों की बारूदी गंध ले
मधु मक्खियां रो रही

नदियां गरल ले बह रही
मृदा विषाक्त हो चली
विकार वाहक शस्य बने
लख मनु रक्त वमन करें

मानसिक विकार ने
चिन्तन प्रभावित कर दिया
भोग ने योग को
आज पराजित कर दिया

विकास ने विनाश को
लक्ष्य दे बुला लिया
सर्वस्व की क्षुधा ने आज
है मनुज को बदल दिया

बदल रही प्रकृति या
बदल प्रकृति को हम रहे
सोच लो तनिक ठहर
जा किधर हम रहे ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन , भोपाल
दिनांक : ०५ / १२ / २०२४







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