Meri Gajale Mere Geet (मेरी ग़ज़लें मेरे गीत)
शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2024
छा रहा कुहासा आज फिर
सभ्यताएं सिहर फिर रही हैं
नव कोपलें पीत हो रही हैं
दरख्त असहाय से खड़े हैं
कराहती दिख रही हर दिशाएं
हवाएँ बिषैली बह रही हैं
फूलों में बारूद की गंध
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