शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2024

छा रहा कुहासा आज फिर
सभ्यताएं सिहर फिर रही हैं
नव कोपलें पीत हो रही हैं
दरख्त असहाय से खड़े हैं

कराहती दिख रही हर दिशाएं
हवाएँ बिषैली बह रही हैं 
फूलों में बारूद की गंध



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