शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

प्यार होने लगा है

आंखों की पुतली 
मुस्कुराने लगे जब 
गालो की रंगत 
सुर्ख होने लगे जब
नुथनों पे लाली 
छाने लगे जब
अधरों की फांके
थरथराने लगे जब
धड़कन दिल की
गुनगुनाने लगे जब
गुदगुदी उदर में
सताने लगे जब
कदमों की चालें
डगमगाने लगे जब
नीद में बन सपने 
वो आने लगे जब
बता देता तन मन
प्यार होने लगा है  ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन, भोपाल
दिनांक : २६.०७.२५

बुधवार, 23 जुलाई 2025

किसी को फुरसत कहां 
ठहर, कर ले, खैरमकदम
क्यूं बेज़ार हुआ जाता कि,
किस्से नही सुने जमाने नें ।

जमाना कहां कब पूछता ?
दर्द से, क्या हाल है !
खुशियों के साथ ही
उसकी रही है दोस्ती । 

प्यार को प्यार से पूछता
बस दर्द है
प्यार में व्यापार करता 
प्यार तो बस ज़र्द है ।


शुक्रवार, 18 जुलाई 2025

ढूढ़ने से दोस्त  ना मिलेंगे ऐ रहनशी
बन किसी की दोस्त खुद, होजा तू जहनशी ।
उमेश
१८.०७.२५
१ .मार्ग दर्शन करने वाला
२ .मन में बसा हुआ

शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

बयारी ये बरखा

वो छू गई जो
मदमस्त कर गई वो
सिहरन जगी जो
गई रूह तक वो
बजी रागनी जो
गुंजित अभी वो
खो सा गया हूं
इस रागनी में
घुल सा गया हूं
बन गंध हवा में
अभी भी है सिहलन
तन में व मन में
जगी जो है थिरकन
जीवन की उमंग में
हैं बदरा कि ये
छटते नहीं हैं
पवन वेग से भी
हटते नहीं है
आषाढ़ी ये बून्दे
तपता बदन है
बयारी ये बरखा
झुलसा ये तन है
न छुई ये तन को
गई सीधे मन को
मैं भीगा नहीं हूं
मचल सा गया हूं
लगा अंग इसको
पिघल सा गया हूं

उमेश कुमार श्रीवास्तव, जबलपुर, दिनांक ०५.०७.१७

गुरुवार, 3 जुलाई 2025

माया का खेल

अब तक गूंज रहें हैं
वे शब्द
आंखो ने जिनको सुन
किया था
कर्ण पटल पर अंकित मेरे
" कुछ नही है मेरे दिल में
आपकी खातिर "
प्रेम, घृणा, तिरस्कार के
भावों के मध्य
अनेको अन्य भाव हैं जाग्रत
परा जगत के
मैं भी जान रहा , तुम सा ही
जिन्हे छिपा सकेगा कोई
क्यूं कर ।

हूं जान रहा
बहता हूं अब भी
उसी तरह 
तेरे हिय के, लहू कणों में
सांसों में भी तेरी
वैसे ही भरा हुआ हूं
जैसा खुद 
अनुभव करता हूं तुमको
अपने रक्त कणों में
और
अपान , उदान, व्यान, समान
के संग प्राण वायु के
हर आरोह अवरोह में ।

कितना निष्ठुर किया होगा तुमने
अपने हिय को
तरल सरल अविरल
बहती सरिता को
शुष्क रेत में परिवर्तित
बस,  तुम कर सकती हो

बस मेरे खातिर
हर झंझावात से दूर
मुझे करने को
तुमने बड़वानल को
खुद के खातिर 
आज चुना है
मुस्कान लिये अधरों पर
श्रृंगारिक
अग्निपथ पर
अपना जीवन होम दिया है ।

ना तुम भूल सकोगे
मुझको
ना मैं तुमको
पर 
आभासित इस जीवन में
तेरे कथनों का
मान रखूंगा
कि तेरे हिय में 
कुछ नही है
मेरे खातिर,
ना प्रेम ना घृणा
पर इससे इतर
जानना है बहुत
समाया जो इन सब से परे
है परा जगत की माया ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव

बुधवार, 2 जुलाई 2025

अषाण घन

अषाण घन 

छाये अषाण घन चहुंदिश नभ में
शुष्क धरा पर अंधियारी छाई
अधिवासी वन, पुर, पुरवा के
झूम उठे बरखा ऋतु आई ।

चहक रहें सब थलचर नभचर
जलचर ने भी तरुणाई पाई
सरसर सरसर बहे पवन है
बूंदो ने अगुवाई पाई ।

रिमझिम रिमझिम गाती बूंदें
पड़ धरती पर ताल बजाई
सोंधी सोंधी महक बिखरती
चपला चमक नृत्य दिखाई ।

मार्तण्ड छिपे वारिद में जा कर
उद्विग्न प्राण ने शीतलता पाई
जग आनन प्रमुदित फुहार तक
घन दुदुंभि दे बजे बधाई

बाजत ढोल दुदुंभि तुल्य घन
आतप दबा पावस ऋतु आई
इकसार बना रहा कब कोई
काल चक्र बस ले अंगड़ाई ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन , भोपाल
दिनांक : ०२.०७.२०२५