प्रेम पर मुक्तक
प्रेम रंग डूबे वही,
जामे अनन्त को वाश ,
हर हिय में रमता वही ,
का आम का खास ।
हिय हिलोर के छानिये ,
नवनीत प्रेम अति मृदु ,
अंग अंग पर लेपिये ,
होये पीर विलुप्त ၊
प्रेम आश है बावरी
ना बैठे इक ठौर
सदा भटकती संग संग
मिलन कोश हो दूर ၊
प्रेम तृषा मृगलोचनी ,
भरमाये हर बार ,
तिरछे चितवन से लखे ,
जाये हिय के पार ၊
प्रेम न देखे रंग है,
प्रेम न देखे रूप,
जड़ चेतन जिससे जुड़े,
ढले उसी के रूप ၊
उमर न कोई प्रेम की
न कोई है गात
हिय मध्य जब ऊपजे
दमके दिन अऊ रात ၊ ।
उमेश कुमार श्रीवास्तव
इन्दौर
दिनांक : १२ . ०९ . २०
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