मंगलवार, 29 अक्टूबर 2024

गज़ल खामोश नज़र का ये असर

ग़ज़ल

खामोश नज़र का ये असर , कुछ धीमा धीमा है
विंदास अदा का ये कहर ,  कुछ धीमा धीमा है

देखो ठहर सी जाती अब , जीवन की तड़पती चपला ये
पायल की रुनझुन का ये असर, कुछ धीमा धीमा है

प्यासी तड़पती बुलबुल ये , मर जाये ना इक आश लिए
मद से भरे अधरों का असर , कुछ धीमा धीमा है

बिखरी सबा में खुशबूए , गश खाने लगा दिल ठहर ठहर
ज़ुल्फो का तेरी , खुशबू का असर, कुछ धीमा धीमा है

ये शोख अदा ये बांकापन , उस पे ये जवां अंगड़ाई
यौवन की तेरे, इस मय का असर , कुछ धीमा धीमा है

खामोश नज़र का ये असर , कुछ धीमा धीमा है
विंदास अदा का ये कहर ,  कुछ धीमा धीमा है

                    उमेश कुमार श्रीवास्तव

शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2024

कल,आज और कल

छा रहा कुहासा फिर
सभ्यताएं सिहर रही 
नव कोपलें पीत हो रही 
दरख्त खड़े असहाय हैं

कराहती हर दिशाएं
हवाएँ बिषैली बह रही 
फूलों की बारूदी गंध ले
मधु मक्खियां रो रही

नदियां गरल ले बह रही
मृदा विषाक्त हो चली
विकार वाहक शस्य बने
लख मनु रक्त वमन करें

मानसिक विकार ने
चिन्तन प्रभावित कर दिया
भोग ने योग को
आज पराजित कर दिया

विकास ने विनाश को
लक्ष्य दे बुला लिया
सर्वस्व की क्षुधा ने आज
है मनुज को बदल दिया

बदल रही प्रकृति या
बदल प्रकृति को हम रहे
सोच लो तनिक ठहर
जा किधर हम रहे ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन , भोपाल
दिनांक : ०५ / १२ / २०२४







हम अपनी सुविधाओं का 
कितना ध्यान रखते हैं
दूसरों की असुविधाओं से
हो बेपरवाह
पीड़ा क्या होती है
तभी पता चलता है
जब होती स्वयं को वह
दूसरों की पीड़ा बेमतलब की
हमें उससे लेना व देना क्या

बना लेते हैं अनेको बहाने
जब जरा अड़चन आती है 
अपनी सुविधाओं में
दूसरों से छिनने को सुविधाएं
भले  ही जी रहा हो वह पीड़ाओं में


बुधवार, 23 अक्टूबर 2024

"बहल जाता हूं " गज़ल

बहल जाता हूं अब तो
खुमार - ए - गम से 
खुशियों की तमन्ना
अब किया नही करता ।

टीश , दिल में , दिमाग में
या  हो बदन में 
अश्क का इंतजार 
अब किया नही करता ।

ख्वाब दिल में रहे
जितनी भी हसरतें ले कर
ख्वाबों पर एतबार
अब किया नही करता ।

टूटना बिखरना 
कहा करते किसको
इनका दर्द सुमार
अब किया नही करता ।

पास आ कर तुम
क्या पाओगे मुझमें
दुनिया में  खुद को सुमार 
अब किया नही करता ।

महफिल से जा 
ख्वाबों में  न आओ यूं 
ख्वाबों पर  मैं एतबार 
अब किया नही करता ।

दिनांक २३ . १० . २४


सोमवार, 21 अक्टूबर 2024

मीत सदा तुम गुंजन करना
भ्रमर बने बगिया में रहना
मीत सदा तुम गुंजन करना ।
भांति भांति की पुष्प लताएँ
भांति भांति के पुष्प कुंज हैं
 कलियां ना कुम्हलाने पायें
पुष्प बने सब वह गीत सुनाना

सोमवार, 14 अक्टूबर 2024

शेर

आंसू तो है वो कतरा जो सब कुछ चीर देता है
चाहे वो अन्दर हो या बाहर घाव गम्भीर देता है ।....उमेश

मित्र क्या है ?

मित्र क्या है !

रूप है ,
कृष्ण सा
सखाओं का सखा
दर्द का अवलेह है
कष्ट का निवारक
मुस्कान जिसकी
मोह लेती पाषाण को भी ।

मित्र क्या है ?
श्रेष्ठ रस ,
श्रृंगार सा
सुख मधुरिमा लुटाता
आनन्द के अतिरेक तक
मेट देता दुःखों की
हर रेख को
मित्र आमुख पर
प्रसन्नता ला टिकाता ।

मित्र क्या है ?
इक गंध है , 
अत्यन्त मीठी
मोहक , चंचलता लिये
बरसात की बून्दों से उपजी
धरा धूल सी सोंधी
अस्तित्व हर
प्राणों में रमती है जो ।

मित्र क्या है ?
स्पर्श है ?
संवेदनाओं की 
मां के करों की
पिता के हृदय की
भगनियों के नयन की
जो उतरती धमनियों से
गेह के हर पोर से
स्निग्ध स्नेह बिखेरने
करों पर ।

मित्र क्या है ?
नाद है , 
अह्लाद का 
प्रमोद का प्रह्लाद का
कर्ण पटल पर 
अनुगूंज जिसकी
वेणु धुन सी
मोहित करती प्राण को
आत्मतत्व में
अनाहत नाद सी । 

मित्र क्या है ?
वास्तव में धरा है
जिसमें समाहित
शब्द , स्पर्श , रूप , रस , गंध
सर्वगुण
जो पोषती , स्निग्ध हृदय से
सब रूप में
सुहृदय सहचर बन कर ।


 उमेश कुमार श्रीवास्तव
राजभवन , भोपाल
दिनांक : १० . १० . २०२४