तुम !
सच , तुम
गुदगुदा जाती हो
मेरे मन को
अंदर तक
जहां से उदभुत होती है
सच्चाई कि रौशनियां
वहाँ तक तुम्हारी सादगी
वार करती है जा
और मैं
कहने को विवश हो उठता हूँ
कि तुम सुन्दर हो
अति सुन्दर
उमेश कुमार श्रीवास्तव
सच , तुम
गुदगुदा जाती हो
मेरे मन को
अंदर तक
जहां से उदभुत होती है
सच्चाई कि रौशनियां
वहाँ तक तुम्हारी सादगी
वार करती है जा
और मैं
कहने को विवश हो उठता हूँ
कि तुम सुन्दर हो
अति सुन्दर
उमेश कुमार श्रीवास्तव
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें