समय का सफ़र
साँझ का झुरमुट ,
पंक्षियों कि
चीं - चीं , कुट -कुट
रक्तमय अम्बर पर सोई धूप
छुट पुट
अरुणचूर्ण की कुकडुककूँ
चूजों की चूं -चूँ
चर मंजिले पे बैठे
कबूतरों की गुटरूकगूँ
मानव का शोर ,
शान्ति की ओर
बढ़ रहा ऐसे
जैसे चितचोर
रात का अंधकार
कर गया मानव को प्यार
साँझ के ढलते ही
सो गया चौक बाजार
रात्रि का द्वितीय पहर
तप रहा पूरा
अमीरों की गुदगुदी वो
गरीबों का जो कहर
गगन पर छाया प्रकाश
तारो से भरा आकाश
सप्त ऋषि का आकार
हो रहा ध्रुव पर न्योक्षार
प्रभात कि प्रथम वेला
झुक गए हैं गुरु चेला
पक्षियों की चीँ -चीँ चूँ -चूँ
मुर्गे की कुकडुक कूँ
अरुणमय है पूर्वाम्बर
चहल कदमी है घर घर
कमल को आई मुस्कान
कुमुद पर छाया श्यमसान
धीरे से बदला आकार
आ गया सूर्य मध्य द्वार
तपती धरती लगे प्रलयंकार
बंद हुई चौमुखी बयार
फिर आई धीरे से साँझ
मिला हो जैसे पुत्र बाँझ
कुमुद की अर्ध मुस्कान
कमल की भी यही पहचान
फिर चिड़ियों की ची -ची चुट -चुट
फिर सांझ का वही झुरमुट
उमेश कुमार श्रीवास्तव (२०. ०७. १९८५ )
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