गजल
मैं
चाहता
बहोत
हूँ,
खोया
रहूं
तुझी
में
पर करूं क्या मैं, तेरा , ये गुरुर रोक देता ।
पर करूं क्या मैं, तेरा , ये गुरुर रोक देता ।
कहने
को
बंदिशें
हैं
,
जमानें
की
हर
तरफ
है मजाल क्या किसी में ? तेरी बंदगी रोक देता ।
है मजाल क्या किसी में ? तेरी बंदगी रोक देता ।
सरफरोश
हूं
मैं
तेगे
जुनू
है
अब
तक,रुकता
नहीं
मैं
अब
तक,जो
तू
ही
न
रोक
देता
।
मिलते
नहीं
ऐसे,अब
सरफरोश
दिवाने
जाना जो तूने होता, तो यूँ न टोंक देता ।
जाना जो तूने होता, तो यूँ न टोंक देता ।
जन्नत
की
चाशनी
गर,
ये
हुश्न
है
तुम्हारा
चखने को स्वाद इसका क्यूं , मरनें नहीं है देता
चखने को स्वाद इसका क्यूं , मरनें नहीं है देता
उमेश
(२६.
०३.
२०१६)
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