क्या
कहती
नदिया
धारा
अय
नदिया
की
निर्मल
धारा
तू क्यूं बहती रहती है
शीतलता का ओढ़ आवरण
सबको शीतल करती है।
तू क्यूं बहती रहती है
शीतलता का ओढ़ आवरण
सबको शीतल करती है।
कल
कल
कलरव
निश्छल
निर्मल
अविकल अविचल सदा निरन्तर
नहीं शोर, बस निर्झर निर्झर
सब को आन्दोलित क्यूं करती है ।
अविकल अविचल सदा निरन्तर
नहीं शोर, बस निर्झर निर्झर
सब को आन्दोलित क्यूं करती है ।
अहंकार
प्रतिरोध
अगर
निर्मलता तज ले रौद्र रूप
कर देती सबको भयाक्रान्त
क्या अबला की सबलता दर्शाती हो ?
निर्मलता तज ले रौद्र रूप
कर देती सबको भयाक्रान्त
क्या अबला की सबलता दर्शाती हो ?
चंचल
वन
,
निर्जन
आंगन
पाषाणित गज, कुशुमित उपवन
सबमें रस भर सुरभित कर कर
क्या बैभव अपना झलकाती हो
पाषाणित गज, कुशुमित उपवन
सबमें रस भर सुरभित कर कर
क्या बैभव अपना झलकाती हो
उमेश
(28.०३.२०१६)
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