कशक-ए- जिंदगी
कदम-बोसी नही फ़ितरत मेरी, ऐ जमाने
न कर इल्तजा मुझसे मायूस होगा
तू अपनी राह चल, मैं अपनी
शुकून तुझको भी होगा शुकून मुझको भी होगा
न कर इल्तजा मुझसे मायूस होगा
तू अपनी राह चल, मैं अपनी
शुकून तुझको भी होगा शुकून मुझको भी होगा
तू कहता बंदगी कर लूं ,तम्मन्ना पूरी होगी
मैं कहता, हूँ मज़े में,क्यूँ हुजूरी में गिरु
तू कहता ऐश करेगा,मैं कहता खाक हूँ क्या ?
तू कहता ना अकड़ यूँ , मैं कहता बे-रीढ़ नही मैं
मैं कहता, हूँ मज़े में,क्यूँ हुजूरी में गिरु
तू कहता ऐश करेगा,मैं कहता खाक हूँ क्या ?
तू कहता ना अकड़ यूँ , मैं कहता बे-रीढ़ नही मैं
ये जमाने तू अपनी राह चल,मुझे जीने दे,
तेरी हर दम बदलती राह पर मैं ना चलूँगा
मेरे दायरे हैं अपने, जिसमें हूँ मज़े में
मेरे आदर्श की परिभाषाएँ न बदली है अभी
तेरी हर दम बदलती राह पर मैं ना चलूँगा
मेरे दायरे हैं अपने, जिसमें हूँ मज़े में
मेरे आदर्श की परिभाषाएँ न बदली है अभी
तू कहता है मुझे दकियानूसी, वो हूँ मैं
तू कहता मुझे अड़ियल, वो हूँ मैं
न ढलना मुझे तेरी इस निज़ामात में
जहाँ मन, बदन, रिश्ते सभी उघड़े हैं.
तू कहता मुझे अड़ियल, वो हूँ मैं
न ढलना मुझे तेरी इस निज़ामात में
जहाँ मन, बदन, रिश्ते सभी उघड़े हैं.
कदम-बोसी नही फ़ितरत मेरी, ऐ जमाने
न कर इल्तजा मुझसे मायूस होगा
तू अपनी राह चल, मैं अपनी
शुकून तुझको भी होगा शुकून मुझको भी होगा
न कर इल्तजा मुझसे मायूस होगा
तू अपनी राह चल, मैं अपनी
शुकून तुझको भी होगा शुकून मुझको भी होगा
।
उमेश कुमार श्रीवास्तव (३०.०३.२०१६) ၊
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