मुक्तक
दर्द के अहसास यूँ ना दिलाया करो
चाँद बन मेरे छत पे यूँ ना आया करो
देगी बदल रंग शबनम, जिगर- ए- लहू लेकर
ख्वाबों मे आ तुम यूँ झिलमिलाया ना करो
... उमेश
सब्र करता रहा सब्र जाता रहा
इक वजह तो रहे इंतजार की ।
वो परदा भी क्या कफन जो बने
विस्मिल दिले बेकरार की ।.....उमेश
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें