बुधवार, 17 दिसंबर 2025

नाद

रश्मियों का नाद, मैने सुना है
सन्नाटे की आवाज, मैने सुना है
गुनगुनाती सुनी हैं दश दिशायें
ब्रम्ह स्वर विलक्षण, भी सुना है

पर्वतों, कंदराओं और घाटियो की
सरगमी ध्वनि साज जो गुन सको
तड़ित सा मुस्कुरा तुम कह सकोगे
मदन स्वर बांसुरी का मैने सुना है

झूमते तरु,शाख गाती मल्हार जब
पल्लवों से टपकती जब अल्हड़ बूंदें,
जो साध लो संगीत इनके, हृदय पट पर 
कह दो अलौकिक संगीत मैने सुना है

तितलियों से बात करते मृग स्वरों को
झूमते चिग्घाड़ते गज - नग स्वरों को
सरिता हृदय सहलाती, पवन जिस स्वर
पुष्प - भृंग संवाद सा उनको सुना है ।

हर नाद मेरी नाद में यूं घुल गई है
ॐकार की नाद सा अब हो चला हूं
अनहद तो नही ! उस सा बनने हूं लगा
आत्म ध्वनि,स्वर, नाद को जब से सुना है ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
लोक भवन , भोपाल
दिनांक : १८ .१२.२०२५

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