तब पहुचाता शीतलता शशि है
अनल वेग से तपता वारिधि जब
तब शीतल कर पाता वारिद है ၊
तरल,सरल बन,जलता बाती में
दीप, तिमिर तब दूर करे,
अग्निदग्ध हो माटी तपती,
तब वसित, नगरों को वो करे ၊
अतुल्य दाह व पीड़ा सहती
प्रसव जगत तब करती प्रसू
वक्ष स्थल पर दारक हल सह
जग पोषण करती मां भू ၊
सदकर्मों का ताप बढ़े जब
सदगति तब ही देते हैं वसु ၊
सदकर्म करो तप से भी तपो
भयहीन बनों संग हैं जो प्रभू ၊၊
उमेश श्रीवास्तव
केराकत जौनपुर प्रवास
दिनांक २४.१२.२०२०
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