सच को
सच साबित करना
अभी
सुबह जग कर
परदे सरकाये
सुनहली धूप
बिखरी दिखी चहुं दिश
किरणों संग
गरमाहट का बाग
फुटहरी कलियां ले
गलीचे का रूप धरे
कदम तले
नरम हथेली से
सहलाती सी
उन्माद जगाये
आंगन में फुदकती
चिड़ियो की चुक चुक
मीठी मीठी स्वर लहरी
शीतलता का
अहसास जगाती
मधुर बयार संग
अन्तर मन को भी
उष्मता बांट रही थी ၊
मन सधता सा
अध्यात्म जगत की ओर
साधना पथ पर
बस बढ़ने को था ၊
पर शायद
यह मेरा भ्रम था
यथार्थ नही
क्यों कि
उसने आ कर
उन्मादित स्वर में कहा
क्या मौसम है !
रिमझिम रिमझिम
गिरता पानी
बादल का संग छोड़
हम से संगत जोड़ रहा है
देखो चहुं दिश
धुआंधार सा पसरा
जलकण
शीतलता का अहसास कराता
तन मन दोनो
भिगो रहा है
चिन्तन में भी
अपनी स्मृतियां
गोभ रहा है ၊
पग तल में
छप छप राग
अन्तस तक झंकारित
लिपट नाचने को
अंग अंग
फड़के
उष्म हो चुकी
रक्त वाहिनियां
उन्मादित
तन मचले आलिंगन को
तड़ित कौंधती
हर विचार में
ज्यूं रवि रश्मियां
अपनी कमशिन काया के
अंकों में भर
उष्मा से भर रही
चहकते नभचर
संगीत मिलन का
छेड़े देखो
कहां तुम खोये
यह मिलन बिन्दु
आत्म प्रकृति का
आओ कुछ आज यहां हम बोयें ၊
क्या सच है ?
बिचर रहा इस माया वन में
बिचार रथी बन
अपने रथ पर
इन्द्रियों का अश्व
भाग रहा है
रथी अश्वों को
बस देख रहा
ना साध रहा है ၊
उमेश कुमार श्रीवास्तव
नव जीवन विहार विन्ध्य नगर
सिंगरौली
दिनांक : ०९ . ०३ . २०२१
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