है दूर से आती पुकार
आजा पथिक आजा पथिक
कहता अनिल है बार बार
आजा पथिक आजा पथिक
है जोहती मंज़िल तुझे
धैर्य की सीमा तले
अब देर ना कर और तू
आजा पथिक आजा पथिक
प्रमाद की बेला कहाँ अब
क्यूँ हो रहा निःसहाय है
अकर्मण्यता का त्याग कर
आजा पथिक आजा पथिक
कॅंटको से जूझ कर
जब मध्यमा तक आ गया
डर ना फिर शूल से
आजा पथिक आजा पथिक
मौत शाश्वत है सदा
फिर सोचता क्यूँ उस दिशा
जिंदगी कर संघर्ष तू
आजा पथिक आजा पथिक
बेचैनियों का ये लबादा
दूर कर दे दृष्टि से
उत्साह भर प्रमोद ले
आजा पथिक आजा पथिक
जब जोहती है बाट तेरा
स्वमेव ही मंज़िल तेरी
फिर तोड़ तू भव बँध को
आजा पथिक आजा पथिक
उमेश कुमार श्रीवास्तव
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