इक बूँद हूँ मैं
आश की
विश्वास की
आभास की
जो कभी ना भर सकी
प्याला , प्याला !
इक प्यास की
इक बूँद हूँ मैं
श्वेद की
निर्वेद की
इक खेद की
जीती रही जो सर्वदा
बहती हुई निर्बाध सी
इक बूँद हूँ मैं
उस जलद की
जो कभी बरसा नहीं
हरसा नहीं
थरसा नहीं
स्वयं में सिमटा रहा
जो सर्वदा...सर्वदा
इक बूँद हूँ मैं
अजनबी सी
अनछुइ सी
अनकही सी
अज्ञात लुप्त
हो जाए गुप्त
वाष्प की जो
बन परिणीता
...........उमेश श्रीवास्तव..
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें