अब तो दो धीरज मुझको
ना जाती सही ये पीड़ा
तुम छिपी कहाँ हो बैठी
मेरे जीवन की वीणा
कब तक संसार समंदर के
लहरों से इसे बचाऊँ
टूटी नैया को कैसे
इन ज्वारों में पार लगाऊं
तुम तो सब की सम्बल हो
मेरी भी बन जाओ
अब तक तड़प रहा था
ना अब तनिक तडपाओ
क्या स्वप्न मेरे ये सारे
यूँ टूट बिखर जाएँगे
जग मे आने के सब कारक
सब व्यर्थ चले जाएँगे
हाँ भाग्य मेरा है खोटा
तुम तो ना करो किनारा
मैं भाग्या बिना जी लूँगा
गर तुमसे मिले सहारा
बिखर न जाऊं कहीं मैं
आ मुझे तनिक सम्हलो
अपने आँचल के छाव तले
तनिक मुझे सुला लो
मैं आया क्यू था जाग में
हूँ भूल रहा मैं सब कुछ
आ जाओ बन प्रेरणा तुम
ले लो अब तो मेरी सुध
बस एक बार स्वर लहरी
जीवन मे बिखेर दो मेरे
फिर चाहे जीवन तरणी
जा छिपे कहीं घनेरे
मैं सिसक रहा हूँ क्या तुम
अब भी द्रवित ना होगी
इस दुर्दिन में भी मेरे
क्या निष्ठुर बनी रहोगी
आ जाओ मेरी आभा तुम
आ जाओ मेरी कांति
है जीवन मेरा शोर बना
दे दो इसे आ शान्ति
...उमेश श्रीवास्तव...18.05.1989
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