१
अब तो हूँ मैं लाश जिधर भी ले चलो
रंज गम औ खुशी को खुदा हाफ़िज
२
कितने अरमां ले निकला था सफ़र में
काफिला बढ़ गया खाक के चंद गुबार दे कर
३
सिसकियाँ निकली न अश्क ही चश्मों से बहे
इक रेत का घरोंदा ढहा औ हम तन्हा रह गये
४
काश इक ख्वाहिश तो हो जाती पूरी
क्या आया ही हूँ जीने जिंदगी अधूरी
५
इतनी दफ़ा टूटा जुड़ा हूँ जिंदगी में
कि , बस उसी का नाम अब है जिंदगी
६
ढूँढने से लोग कहते खुदा मिलता
मुझको अब तक नाखुदा तक मिला नहीं
७
इतने अरमाँ क्यूँ पाल रखे थे तूने
कि मौत पर इनकी दो कतरे अश्क बहा न सके
८
खुशफ़हमियों नें मुझको है खाक में मिलाया
बदगुमानियाँ ही देखें कुछ राह ही दिखाएँ
उमेश कुमार श्रीवास्तव
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