नीर
नीर
इक लकीर है
अस्तित्व की
इस जगत में
जीवन की
नीर
इक प्रतिबिम्ब है
हृदय का
हर स्पंदन
है समाहित
उसमें
नीर
इक रश्मि है
प्रमोद की
दमकती है
नयनो में
मोतियो सम
नीर
इक पथ है
समाधि की
सज़ा
दया , करुणा, प्रेम से
बिठाती है पास
उसके
नीर
इक सृष्टि है
है समेटे
जड़ चेतन औ
अचेतन
ब्रम्ह को भी
नीर
इक कण
ओस का
गुमनाम सा उदय हो
गुमनाम रहना चाहता
देख अदृश्य होता, उजाला
नीर
इक जलद है
स्वच्छंद घुमक्कड़
दूसरों पर,
पर जीवन
कर देता तर्पण
नीर
इक समुद्र
विशाल वक्ष
शान्त,गंभीर
निश्च्छलता का
ओढ़े आवरण
नीर
बस नीर है
कुछ चंद जल कण
लुढ़क जाते अधर पर
औ कभी
पद रज तल
उमेश कुमार श्रीवास्तव
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