ग़ज़ल
जिगर का लहू है कागज पे यारो
ग़ज़ल कह न इसको फ़ना कीजिए
अश्के नमी है हर मोड़ पर
फिसलन से बच कर चला कीजिए
कसक-ए-मोहब्बत दिल में बसी है
दर पर न इसके हंसा कीजिए
जख़्मो से खूं तो अब भी है रिसता
हैं मरहम ये आँसू न गवाँ दीजिए
मैं तो हूँ, खाक-ए-चमन अब तो यारो
हमसे न यूँ अब मिला कीजिए
जिगर का लहू है कागज पे यारो
ग़ज़ल कह न इसको फ़ना कीजिए
उमेश कुमार श्रीवास्तव
जिगर का लहू है कागज पे यारो
ग़ज़ल कह न इसको फ़ना कीजिए
अश्के नमी है हर मोड़ पर
फिसलन से बच कर चला कीजिए
कसक-ए-मोहब्बत दिल में बसी है
दर पर न इसके हंसा कीजिए
जख़्मो से खूं तो अब भी है रिसता
हैं मरहम ये आँसू न गवाँ दीजिए
मैं तो हूँ, खाक-ए-चमन अब तो यारो
हमसे न यूँ अब मिला कीजिए
जिगर का लहू है कागज पे यारो
ग़ज़ल कह न इसको फ़ना कीजिए
उमेश कुमार श्रीवास्तव
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