हमें तो शौक़ था इंतजारी का
पर इतना भी नहीं जितना तूने करा दिया
दिख भी जाओ, मेरे चाँद दूज के
नहीं तो कहोगे, तुमने ही दिया बुझा दिया...........उमेश.
खुशियो के गाळीचे पे गम का इक क़तरा
नही बना पायेगा खारा समन्दर..................उमेश...
मेरे तो अपने ही बहोत है गम देने को
मेहनत ना करो इतना तुम तो बेगाने ठहरे.........उमेश...
गुफ्तगू करता रहा मुद्द्तो से में तेरी
दरम्यान राजे-नियाज़ भूला ज़ुबाँ चलाना..........उमेश...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें