शुक्रवार, 31 जुलाई 2020
चन्द अहसास
गज़ल एक मुद्दत हुई उनको साथ देखे
गुरुवार, 30 जुलाई 2020
कुछ शेर
मंगलवार, 28 जुलाई 2020
तुमको उठना ही होगा
गज़ल၊ गम में किसी के दिल को जला कर
सोमवार, 27 जुलाई 2020
ग़ज़ल मुल्केअदम से लौट कर आऊंगा एक दिन
मद कामनी
रविवार, 26 जुलाई 2020
तीन शेर
गज़ल। मेरे गेसुओं की महक के सहारे
शनिवार, 25 जुलाई 2020
शेर
ग़ज़ल ये ज़ुनू है वहशत है या है दीवानगी
आज धुंधलके उसको देखा
शुक्रवार, 24 जुलाई 2020
तलाश
उस अजनबी की तलाश में
आज भी बेकरार भटक रहा हूँ
जिसे वर्षों से मैं जानता हूँ
शक्ल से ना सही
उसकी आहटों से उसे पहचानता हूँ ၊
उसकी महक आज भी मुझे
अहसास करा जाती है
मौजूदगी की उसकी
मेरे ही आस पास ၊
हवा की सरसराहट सी ही आती है
पर हवस पर मेरे
इस कदर छा जाती है ज्यूँ
आगोश में हूँ मैं, उसके,या
वह मेरे आगोश में कसमसा रही हो ၊
कितने करीब अनुभव की है मैंने
उसकी साँसे,और
उसके अधरों की नर्म गरमी
महसूस की है अपने अधरों पर ၊
उसकी कोमल उंगलिओं की वह सहलन
अब भी महसूस करता हूँ
अपने बालों में
जिसे वह सहला जाती है चुपके चुपके ၊
उसके खुले गीले कुन्तल की
शीतलता अब तक
मौजूद है मेरे वक्षस्थल पर
जिसे बिखेर वह निहारती है मुझे
आँखों में आँखे डाल ၊
पर अब तक तलाश रहा हूँ
उस अजनबी को,
जिसे मैं जानता हूँ,
वर्षों से!
वर्षों से नहीं सदियों से ၊
जाने कब पूरी होगी मेरी तलाश
उस अजनबी की
..................उमेश श्रीवास्तव
गुरुवार, 23 जुलाई 2020
दरश की आश
दरश की आश
नेह जगा
हृदय गुहा में ,
कौन भला, चुप बैठा है ,
दुःख के सागर
आनन्दमयी सरि ,
इन द्धय तीरों पर
रहता है ၊
आश जगे
या , प्यास जगे ,
श्वांसे बेतरतीब
बहकती हैं,
जिसके आने या जाने से
ये मंद, तीव्र हो
चलती हैं ၊
वाचाल रहे
या, मितभाषी,
आन्दोलित जो कर जाता है ၊
मौन सन्देश से
उर प्रदेश को,
जो,मादक राग सुनाता है ၊
मैं सोचूं या ना सोचूं
पर सोच जहां से चलती है ၊
उस सुरभित
शीतल गलियारें में ,
है प्यास ये जिसकी
पलती है ?
ये पंच भूत की
देह है मेरी ,
औ पंचेन्द्री का ज्ञान कोष्ट ,
पर ,प्रीति,अप्रीति,विषाद त्रयी, सम .
जो घनीभूत हो बैठा है ၊
हूं वाचाल
पर, मौन धरे हूं
आहट उसकी लेता हूं ,
बाह्य जगत से तोड़ के नाता ,
अन्तस को अब सेता हूं ၊
आश यही ले
निरख रहा हूं
शायद उससे मिल जाऊं
वह ही मुझको ढूढ़ ले शायद
जिसे खोज, न, शायद पाऊं ၊
उमेश श्रीवास्तव दि० ०३.१०.१९ : १०.४५ रात्रि
बुधवार, 22 जुलाई 2020
तीन शेर
गज़ल : खुद समझ पाया नहीं अपने मिज़ाज को
सोमवार, 20 जुलाई 2020
अबूझ चिन्तन *अज्ञात
अबूझ चिन्तन *अज्ञात*
तुझे पहचानने का
प्रयत्न,
कितनी बार किया
मैने,
हर प्रयत्न
विफलता देता रहा
क्यूं ?
अवरुद्ध , चिन्तन ၊
करता रहा
मनन,
निरन्तर, कालातीत ၊
पर,
ना जान सका ,
इस भूत बनते क्षण तक
मैं ၊
हर प्रयास मेरा,
सामिप्य का ,
दूर क्षितिज का
अहसास भर जाता,
जहां एकाकी मैं,
आभासित होता
तुमसे ၊
निःशब्द
प्रेषण,
संवादों का, ह्रदय के,
अथक प्रयत्न ၊
विफल ၊
क्या अब,
प्रयत्न, चीखने का
करूं ၊
टीश,मीठी ?
नहीं !
निरर्थक, व्यर्थ ၊
विरलता ,
सघन बनेगी ,
विश्वास ,
है जो ये ,
प्यार ၊
अनवरत
निमग्न चिन्तन ,
रहा ;
अविच्छेद्य,
उहा के
काल से,
मेरे ,मायावी !
ऐ जगत ၊
मैं हूं
उपनिषद
उसके ,
जो ,निमित्त कारण
है जगत का
जब ၊
स्वर्ण आच्छादित
सत्य जो,
आत्माओं का
मूल है ,
है ब्रम्हाण्ड का
जो नियन्ता
ब्रम्ह ,
जब
मैं अंश उसका ၊
उमेश ,दिनांक १४.०९.१९ इन्दौर-भोपाल यात्रा मध्य