गम में किसी के दिल को जला कर
फुर्कत में आँसू बहाता है कोई
जमानें के चलन को देखो तो यारों
मुखौटा लगा गुनगुनाता है कोई
अब तक मैं था बिस्मिल जिगर था
ले दर्दे दवा अब बुलाता है कोई
मैं हूँ मुसाफ़िर सफ़र में रहा हूँ
मगर क्या करूँ अब सुलाता है कोई
अब हूँ वहाँ मैं जहाँ ना कोई था
फिर, महफ़िल वहाँ, क्यू सजाता है कोई
...उमेश श्रीवास्तव...27.02.1991
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