मेरे गेसुओं की महक के सहारे
गुलशन को जन्नत बना लीजिए
तब्बस्सुम खिली जो लब पे मेरे
उसे देख खुद भी खिलखिला लीजिए
कहते समंदर मेरे चश्म को तो
उन्ही में उतर फिर नहा लीजिए
मीना-ए-जाम है जब मेरा ये बदन
तो उठा के लब से लगा लीजिए
गमगिनियों मे कहाँ हो खोए
सभी गम मुझी में भुला दीजिए
...उमेश श्रीवास्तव..26.02.1991
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