आ रहा हूं,
ऐ समन्दर,
रोकना है तो रोक ले
कल न कहना
भय-सूचना बिन
तुझको पराजित है किया ।
वो और होंगे जो तेरी
लहरों से भय खा गये
हम तेरी लहरों पे अपने
गीत लिख के जायेंगे ।
है गुमां तुझको तेरी
अथाह गहराईयो का गर
हम तेरी अतलों में भी
महफ़िल सजा दिखाएंगे ।
हमने सीखा ये ही सदा
झंझावतों को झेलना
तू मचल ले आज जी भर
कल से मुझे तू झेलना ।
हूं जानता, कुछ भी नहीं
सहज मिलता है यहां
पुरुषार्थ पर कर भरोसा
तब ही तो आया हूं यहां ।
ना चाहता सहज में ही
झोली में मोती आ गिरे
कर्म से ,तल से तेरे
ले जाऊंगा तुझसे परे ।
झंझावतो के साथ तू
रोर कर ले ,नाद कर
फेणित तरंगों संग चाहे
रौद्र श्यामल जलधि कर ।
जो कदम मेरे उठे है
ना रोक तू अब पायेगा
राह दे स्वागत कर तू
या पराभव पायेगा। ।
उमेश कुमार श्रीवास्तव , जबलपुर, दिनांक १५.०७.२०१७
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें