लगता है गुम्गस्ता है मेरा कुछ न कुछ
पा तुझे पास भूल जाता हूँ पूछना........... उमेश कुमार श्रीवास्तव
फकत याद में होता रहा खाना खराब
वो भी कितने मगरूर हैं देते नही खत का जबाब................. उमेश कुमार श्रीवास्तव
अंदर से उठ कर धुआँ गुजरता जब दिल के पास से
रौशनाई यादें बन कागज पे चल पड़ती हैं ...... उमेश कुमार श्रीवास्तव
औकात नहीं कि नज्र कर दूं
इक ताज तेरे नाम को
दो अश्क मेरे भी रहे
तेरी कब्र पर ये रूहे इश्क.........उमेश...
क़ब्रगाहे इश्क है ताज भी ये नाज़नीं
दिल के जिंदा ताज की तू तो है मेरी मल्लिका
...उमेश...
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