अबूझ चिन्तन *अज्ञात*
तुझे पहचानने का
प्रयत्न,
कितनी बार किया
मैने,
हर प्रयत्न
विफलता देता रहा
क्यूं ?
अवरुद्ध , चिन्तन ၊
करता रहा
मनन,
निरन्तर, कालातीत ၊
पर,
ना जान सका ,
इस भूत बनते क्षण तक
मैं ၊
हर प्रयास मेरा,
सामिप्य का ,
दूर क्षितिज का
अहसास भर जाता,
जहां एकाकी मैं,
आभासित होता
तुमसे ၊
निःशब्द
प्रेषण,
संवादों का, ह्रदय के,
अथक प्रयत्न ၊
विफल ၊
क्या अब,
प्रयत्न, चीखने का
करूं ၊
टीश,मीठी ?
नहीं !
निरर्थक, व्यर्थ ၊
विरलता ,
सघन बनेगी ,
विश्वास ,
है जो ये ,
प्यार ၊
अनवरत
निमग्न चिन्तन ,
रहा ;
अविच्छेद्य,
उहा के
काल से,
मेरे ,मायावी !
ऐ जगत ၊
मैं हूं
उपनिषद
उसके ,
जो ,निमित्त कारण
है जगत का
जब ၊
स्वर्ण आच्छादित
सत्य जो,
आत्माओं का
मूल है ,
है ब्रम्हाण्ड का
जो नियन्ता
ब्रम्ह ,
जब
मैं अंश उसका ၊
उमेश ,दिनांक १४.०९.१९ इन्दौर-भोपाल यात्रा मध्य
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