दर्द जब सांसों में समा जाता है,
न जाने क्यू ,ये समां ही बदल जाता है ।
.......उमेश
भटकता रहता है खोज़ में , दर-ब-दर
देख दिल में ही छिपा बैठा न हो कहीं ..
...उमेश
कान्हा कान्हा चीख रहे क्यूं ,गली गली चौबारे में,
कान्हा रास रचा रखे जब
दिल के हर गलियारे में ।.....उमेश
बेचैन कर न इस कदर रुह को ऐ जहनशीं,
जो है तेरा ,भीतर तेरे,
वो साथ होगा ,उम्र भर ।
....उमेश
चंद फांसलों पर फ़कत
दरयाफ्त हो जायेगा वो,
तू करीने से जऱा
चश्मों को अपने बन्द कर । ......उमेश
चश्मे हाला में ,ये तूने
क्या मिलाया साकिया,
जन्मों से जिसको ढूंढता
था ,इक घड़ी में पा गया।.....उमेश
रूह में तेरी बसा है, रुह से मिल ले ज़रा ।
क्यूं भटकता दूर तक तू,
अपना नशेमन छोड़
कर । .....उमेश
जान पाया है नहीं, ये जमाना आज तक,
अनसुलझी हूं ,वो पहेली,
अबूझ मैं वो राज़ हूं ।
....उमेश
बाहें पसारे बैठा कोई,नज़रे गड़ाये राह पर ।
गर मुसाफ़िर जान ले,
क्यूं तबाही में फसे ।
... उमेश
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