मार्तण्ड-नीर
हिय में छवि ,तेरी क्या धारी
मैं हो गई बावरी दिनकर
जड़ चेतन सब मोहित मुझ पर
हूं मोहित मैं तुझ पर
छवि मेरी बदल गई है
सब झांक रहे हैं गहवर
रक्तिम लाली गालों पर लख
हैं मोहित होते नभचर
तरूवर छोड़ धरा जड़ अपनी
आये देखो प्रियवर
मै अदनी थी पोखर , भानू
तू बना दिये है सागर
ये छवि मेरी तेरी छाया है
तू मेरा कुसुमाकर
रात रात जग ठिठुर तका है
तब प्रात मिले हो मन नागर
उमेश श्रीवास्तव १९.०१.२०१७
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