रुबाई
ऐसा न था कि डूब जाते हम,
झील, समन्दर, या आब-ए- दरिया में ।
कई डूबतों को बचाया था हमनें ।
न नाप सके तेरी झील सी आखों की गहराई ।
जो डूबे तो फिर , वापस आ न सके ।
झील, समन्दर, या आब-ए- दरिया में ।
कई डूबतों को बचाया था हमनें ।
न नाप सके तेरी झील सी आखों की गहराई ।
जो डूबे तो फिर , वापस आ न सके ।
उमेश श्रीवास्तव
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