जागो भारत जागो
जन रो रहा , गण-मन रो रहा
जय हो रही अधिनायको की सदा
रक्त पी रहे हर राह पर जनों की
विधाता बने भाग्य के जो हमारी
दधिचि बनी थी अब तलक ये काया
हर रहनुमा ने हमें ही लुटाया
नव अधिनायको की गर्जना है भयावह
सिसक है रही मातु भारती अब हमारी
वो भाग्य-विधाता कुन्द-मानस लिए थे
ये रहनुमा तो शातिर चालें लिए हैं
वो बाँटते रहे दिलों को दिलों से
ये तो नुचवा ही देंगे बोटी हमारी
इक देश को उनने सूबों में बाँटा
अँग्रेज़ों की चालों का ले के सहारा
इनकी फितरत कितनी है शातिर
शहर की गली हर, बट रही अब हमारी
पंजाब सिंधु गुजरात मराठा उठो आज फिर जागो
द्राविण उत्कल बंग बंधु सब तंद्रा अपनी त्यागो
वाणी कर्म चरित्र त्रयी से परखो भाग्य विधाता
फिर सौंपो उसको इस जन गण की रखवारी
उमेश कुमार श्रीवास्तव २९.०१.२०१४
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