ग़ज़ल
नित दस्तक है कौन लगाता ,मेरे मन के द्वारे पर
गहन तिमिर छाया अब तो, मेरे मन के द्वारे पर
यादें ही हैं अब तो बाकी, तेरे आने जाने की
मैं तो भूला बैठा खुद को, तेरी राह-गुज़ारे पर
सांझ सबेरे जब भी बैठूं, मैं दिल के अपनें द्वारे पर
यादें आ आ ज़ुल्म ढ़ारती, टूटे दिल बेचारे पर
इक रस्ता तेरे घर जाता, दूजा वीरान राहो पर
उहापोह में पड़ी है कस्ती, कैसे लगे किनारे पर
उमेश कुमार श्रीवास्तव
नित दस्तक है कौन लगाता ,मेरे मन के द्वारे पर
गहन तिमिर छाया अब तो, मेरे मन के द्वारे पर
यादें ही हैं अब तो बाकी, तेरे आने जाने की
मैं तो भूला बैठा खुद को, तेरी राह-गुज़ारे पर
सांझ सबेरे जब भी बैठूं, मैं दिल के अपनें द्वारे पर
यादें आ आ ज़ुल्म ढ़ारती, टूटे दिल बेचारे पर
इक रस्ता तेरे घर जाता, दूजा वीरान राहो पर
उहापोह में पड़ी है कस्ती, कैसे लगे किनारे पर
उमेश कुमार श्रीवास्तव
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