मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

उमस जीवन की


उमस जीवन की

एक लंबे दिन सा
गुजरता
यह जीवन
उमस सा देने लगा है
अब,
अब तो रातो की प्रतीक्षा में
आँखे भी पथरा गई हैं
पर काटता सा
प्रतिक्षण, जीवन
दूर से दूर होता ही
देख रहा है
सांध्य को
जो सूचक है
निशा की

ये अधर मेरे ख्यालो के
सपनो के, अभिलाषाओं के
मुरझा से गये है
बस एक बूँद नीर के बिना
और दूर दूर तक
इस क्षितिज से उस क्षितिज तक
मेघों का साया भी
नज़र नहीं आता
कैसे बधाऊ ढाढ़स
इन सूखते मन श्रोत को
कि जिंदा रख अपने
उत्साह को मेरे यार
कुछ और पल के लिए

अब तो विश्वास भी
डगमगा सा गया है
और खोजने लगा है
इक सैय्या, कॅंटकों की ही सही
जहाँ क्षण भर को ही
विराम पा जाए
इस उमस भरे दिन मे
प्रतीक्षा में , शीतलता भरी
रात के

       उमेश कुमार श्रीवास्तव

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