जीवन इक पुष्प...........?
जब इच्छाएँ दम तोड़ने लगती हैं
आशाएँ धूमिल पड़ जाती हैं
और जीवन
एक भटके जहाज़ की तरह
अनजानी अनचाही
दिशा की ओर
गतिमान हो उठता है
दूर दूर तक चक्रवाती हवाएँ
उठती नज़र आती हैं
और , मन की चंचलता
तप्त रेगिस्तानी रेत सी
शुष्क हो जाती है
तब इक विद्रुप मुस्कान
ठहर जाती है
होठों पर ,कि
जीवन इक पुष्प है
मृदुल,मनोहर,मधुमय
पुष्प
उमेश कुमार श्रीवास्तव
जब इच्छाएँ दम तोड़ने लगती हैं
आशाएँ धूमिल पड़ जाती हैं
और जीवन
एक भटके जहाज़ की तरह
अनजानी अनचाही
दिशा की ओर
गतिमान हो उठता है
दूर दूर तक चक्रवाती हवाएँ
उठती नज़र आती हैं
और , मन की चंचलता
तप्त रेगिस्तानी रेत सी
शुष्क हो जाती है
तब इक विद्रुप मुस्कान
ठहर जाती है
होठों पर ,कि
जीवन इक पुष्प है
मृदुल,मनोहर,मधुमय
पुष्प
उमेश कुमार श्रीवास्तव
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