हम से तो अच्छे वो मयख्वार साकी
मासूक को लब से लगा लेते हैं
ग़मे इश्क को मिलता नही कोई रफ़ीक
जो मिलते हैं झट पर्दा गिरा लेते हैं
मयकश को मिल जाती मय, जा मयकदा
हम तो कूंचे-यार में दिन गुज़ार देते हैं
झूमता मयख्वार, यार सीने से लगा
हमें ख्वाबों से , वो भगा देते हैं
जानते नहीं फन दिलरुबाई का साकी
हम तो शोलो को ही सबा देते हैं
उमेश कुमार श्रीवास्तव
दिनांक: २४.११.१९८९
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