अबूझ अन्तस
हर सुन्दर प्रतिमा क्यूँ ,
लगाती मुझको अपनी सी
हर कुरूपता मुझको ,
लगती बेगानी क्यूँ है।
शान्ति और नीरवता
क्यूँ मेरे मन को भाती
क्यूँ चहल पहल सतरंगी
सदा मुझे छल जाती।
क्यूँ बींधे कंटक तन से
फूलो पर लिखता हूँ
जब चीख रही मानवता
क्यूँ प्रेम काव्य गढ़ता हूँ।
क्यूँ शीतलता मुझको
सदा रही है प्यारी
अनुताप भरा यह जीवन
अनुर्वर सम पड़े दिखाई।
अय बता मेरी प्रेरणा तू ,
क्यूँ छल करती जाती
श्री हीन पड़े जीवन को
क्यूँ , क्रूर बनाती जाती।
उमेश कुमार श्रीवास्तव ०६,०१,१९९१
हर सुन्दर प्रतिमा क्यूँ ,
लगाती मुझको अपनी सी
हर कुरूपता मुझको ,
लगती बेगानी क्यूँ है।
शान्ति और नीरवता
क्यूँ मेरे मन को भाती
क्यूँ चहल पहल सतरंगी
सदा मुझे छल जाती।
क्यूँ बींधे कंटक तन से
फूलो पर लिखता हूँ
जब चीख रही मानवता
क्यूँ प्रेम काव्य गढ़ता हूँ।
क्यूँ शीतलता मुझको
सदा रही है प्यारी
अनुताप भरा यह जीवन
अनुर्वर सम पड़े दिखाई।
अय बता मेरी प्रेरणा तू ,
क्यूँ छल करती जाती
श्री हीन पड़े जीवन को
क्यूँ , क्रूर बनाती जाती।
उमेश कुमार श्रीवास्तव ०६,०१,१९९१
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