1
सुबहे बनारस सा पाक तेरा मरमर का बदन
शरद की धूप सा अहसास दिलाता चेहरा
शामे अवध से मदहोश करते वो नयन
मेरे जज्बातो पे लगा तेरे ख़यालात का पहरा...उमेश
2
बे ख्याली मेरी तूने दिल से लगा ली
बिना जाने की ख्यालों मे तेरी किस कदर डूबा था मैं
धड़कन ,दिल औ लहू-- ए जिगर के कतरे से पूछ ज़रा
ओ तेरा है या मेरा उसे मालूम है क्या.......उमेश
3
रात हमारी धड़कन को इक चुभन हुई
दिल की गहराई में डूबी सी शिहरन हुई
सुबह जगे तो दिल मे इक बेचैनी थी
तुझे हुआ क्या जानूं जा ये लगन हुई......उमेश
4
दर्देदिल बयाँ उन्हे करूँ तो कैसे
मेरी तकलीफियाँ , उनका करार छीन लेती हैं...उमेश
5
दर्द के अहसास यूँ ना दिलाया करो
चाँद बन मेरे छत पे यूँ ना आया करो
देगी बदल रंग शबनम, लहू- ए- जिगर लेकर
ख्वाबों मे आ तुम यूँ झिलमिलाया ना करो ... उमेश
6
भीग जाती जब कभी पलकें मेरी
खिलखिलानें की कोशिशें करता हूँ मैं
आँसुओ के शैलाब भी पी जाता हूँ
कि कहीं कोई , दर्दे दिल पहचान नले.........उमेश
7
सुबह शिकवा थी उनको शाम हमसे शिकायत
ना जाने अब क्या चाहती है जालिम.............उमेश
8
कहने को हमसे खफा है जालिम
पर नज़रों से तब्बस्सुम बिखेरे जाती है..........उमेश
9
हुस्न का दीवाना संसार नज़र आया
खुली जो आँखे नींद से व्यापार नज़र आया .......... ..उमेश
10
दिल के दरवाजे बंद रखोगे तो कैसे कोई वास करेगा
शर्मो हया से ढके रहे तो कैसे कोई आभास करेगा
अहंकार मे डूबे गर तो कैसे कोई विश्वास करेगा
सरल तरल निश्च्छल कर्मो से ही मित्रता पेंग भरेगा..........उमेश
11
औकात नहीं कि नज्र कर दूं
इक ताज तेरे नाम को
दो अश्क मेरे भी रहे
तेरी कब्र पर ये रूहे इश्क.........उमेश...
12
क़ब्रगाहे इश्क है ताज भी ये नाज़नीं
दिल के जिंदा ताज की तू तो है मेरी मल्लिका...उमेश...
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