विस्मिल हुआ जाता है दिल,न इस कदर इठलाइए
मरीज-ए-जुनू पहले से था,और न उसे तड़पाइए
सर नगू है इस कदर , गर्दन भी दुखने लगी
मेरी इस तस्वीर पर कुछ तरस खाइए
प्यासा खड़ा हूँ चस्मे हाला को तेरी
मीना - ए- लब से इन्हे मुझको पिलाइए
मानता हूँ हुस्न की हो इक ज़िंदा मिशाल
इश्क भी है चाशनी ज़रा चख जाइए
मौत को फुरसत कहाँ जो हाल पूछे आ मेरा
'साकी' ज़रा मेरे लिए फुरसत से आइए
उमेश कुमार श्रीवास्तव
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