१ नयनो की मय अब ज़रा होठो पे लाइए
अधरो से छू, हम भी ज़रा जन्नत तो देख लें
२ हम मजबूर हैं कितने की आ भी नही पाते
यह जान कर भी कि तुम, होगी मुंतज़र में
३ तुमने कहा था इक दिन , मैं हूँ वहाँ जहाँ तुम
तब से हर महफ़िल में , तुम हो नज़र आती
४ मैं करता हूँ याद तुम्हे तुम भी तो करती होगी
मैं मुस्काता हूँ बस यूँ, कि तुम मुस्काती होगी
५ रिस रहा है चश्मे से दरिया-ए-लहू
अश्क तेरी याद में कब के फ़ना हो गये
६ गुफ्तगू करता रहा मुद्दतो से मैं तेरी
दरमियाँ राजे-नियाज़ भूला ज़ुबाँ चलाना
७ दिल मुझसे जुदा था जिंदगी हुई जुदा
अश्क भी अब कर चले मुझको अलविदा
८ तब्बस्सुम थी कल तक मेरी मिल्कियत
तब्बस्सुम ही मेरी अदू बन गई है
अश्को से कल तक मेरी थी आदावट
उन्ही से अब तो गुफ्तगू हो चली है
९ चंद लम्हो के सफ़र में गुज़री है इक जिंदगी
अब तो रोशन करेगी यादो की उनकी रोशनी
१० लबों से उनकी मय है छलकती
ज़ुल्फो से खुशबू के रेले हैं उठते
बहकते कदम हैं बिन पिए ही साकी
कूंचे से उनकी जब हम गुज़रते
उमेश कुमार श्रीवास्तव
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