ग़ज़ल
ये जुनू है वहशत है या है दीवानगी
कि हर शख्स में तू है नज़र आती
प्यार से हर बुत को मैं चूमता फिरता
कि हर बुत तेरी अक्से-रु है नज़र आती
राहे इश्क पर कदम मेरे डगमगाते कुछ यूँ
कि कभी पास कभी दूर तू है नज़र आती
तीर-ए-नज़र अब तो रोक लो 'साकी'
दिल की हालत अब विस्मिल है नज़र आती
नाजो अदा तेरी देख लगता कुछ यूँ
हर फन में तू उस्ताद है नज़र आती
उमेश कुमार श्रीवास्तव
दिनांक:२४.११.१९८९
ये जुनू है वहशत है या है दीवानगी
कि हर शख्स में तू है नज़र आती
प्यार से हर बुत को मैं चूमता फिरता
कि हर बुत तेरी अक्से-रु है नज़र आती
राहे इश्क पर कदम मेरे डगमगाते कुछ यूँ
कि कभी पास कभी दूर तू है नज़र आती
तीर-ए-नज़र अब तो रोक लो 'साकी'
दिल की हालत अब विस्मिल है नज़र आती
नाजो अदा तेरी देख लगता कुछ यूँ
हर फन में तू उस्ताद है नज़र आती
उमेश कुमार श्रीवास्तव
दिनांक:२४.११.१९८९
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