हे , नर्मदे
शत नमन
कोटिशः वंदन
स्नेहिल हिय , पुलकित गात
गह्यवर्ता की क्या बिसात
स्पर्श तेरा है वंदन
महक रहा चंहु दिश चन्दन
हे , नर्मदे
शत नमन
कोटिशः वंदन
आँचल की तेरी वो सरकन
कलकल ध्वनि में उन्मोदित मन
शान्त मूर्ति की वह चितवन
तेरे चरणों का शत चुम्बन
हे , नर्मदे
शत नमन
कोटिशः वंदन
आत्म क्षेत्र का कर उल्लंघन
विश्रंखलित हुआ जाता जीवन
भर आत्म शक्ति आलोक प्रमोद
दे सदगति , दे सदचिन्तन
हे , नर्मदे
शत नमन
कोटिशः वंदन
भीगी पलकें भीगे ये नयन
करते तुझको अर्घार्पण
भटकाव भरा यह जीवन
शरणागत अब , दे नव स्पन्दन
हे , नर्मदे
शत नमन
कोटिशः वंदन
उमेश कुमार श्रीवास्तव
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