गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

नव विहान

नव विहान


आखों में छिपा कर चंचलता ,ओठों पे छिपा कर गान
नन्हे पग पर ठुमक रहा, ओ आता नया बिहान

कल-कल करती धारा में, राकेश-रश्मि की ज्वाला में
शशि की शीतल छाया में, करते खग कुल सब गान

वन मध्य मृगों की काया में, मयूरों की चपल सी माया में
वक के शुभ्र परों से, बुन गया नया बितान

सुचि सौम्य सुमन की कुन्जो से, सुमधुर भ्रमर की गुन्जो से
श्रांत क्लांत वितान तले, छा जाता मधुर इक गान

बीते कल की ठिठुरन को, थकित हृदय मन चितवन को
स्फूर्ति, शक्ति औ चंचलता,पुन देता नया विहान

कल के "मैं" को अब दूर करो, कल से "हम" को मजबूत करो
जिससे बन जाये यह , पावन , आने वाला श्रुति गान

उमेश कुमार श्रीवास्तव

नव वर्ष "अभिनंदन"

नव वर्ष  "अभिनंदन"


प्रज्जवलता की आभा में ले शीतलता का चंदन
नये वर्ष की शुभ्र रश्मियाँ, करती सब का "अभिनंदन"

पर्वत शिखरों से फिसल रही शान्त प्रकृति पर बिखर रही
कल- कल करती सरिता पर चमक रही ये बन कुंदन

नये वर्ष की शुभ्र रश्मियाँ, करती सब का "अभिनंदन"

नवीन काल की नव चेतना दे रही आज ये रश्मि तरंग
उमड़ रही है नव जागृति, संतृप्त न होती है चिंतन

नये वर्ष की शुभ्र रश्मियाँ, करती सब का "अभिनंदन"


बार बार अलि भाग रहा नव युग के नव वितान में
पा अनच्छुई कलियाँ का स्पर्श , हो रहा अत्यंत हर्ष
औ ग़ूढ हो रहा मन चिंतन ,

नये वर्ष की शुभ्र रश्मियाँ, करती सब का "अभिनंदन"

उमेश कुमार श्रीवास्तव



सोमवार, 30 नवंबर 2015

वेदना !

वेदना !




प्रकाश का अतिरेक ज्यूँ ,
अंधत्व देता है सहज
ज्ञान के भी अतिरेक को ,
ऐसा समझना चाहिए

चक्षु होना ही नहीं
प्रमाण, सब दीखने को
तंत्रिकाओं से उसका
जुड़ाव होना चाहिए

ज्ञानेन्द्रियों का अतिरेक ही
विध्वंश का कारक रहा
अतिवादिता से लोक को
सदा ही, बचना चाहिए

अच्छाइयाँ ही सदा
आलोक में हों समाज के
बुराइयों को सदा
पर्दों में रखना चाहिए

पर, दिखता, विपरीत इसके
आज चतुर्दिक समाज में
धन-बुद्धि-बल अतिरेक का
पांसा पलटना चाहिए

इन अतिवादियों के मर्म,
संवेदनाओं से है परे,
शुष्क रेत सम पूरित हृदय पर
अब सागर मचलना चाहिए

वेदना है बस यही
सब जान कर भी मौन हैं
देश-धर्म-जन-जाति खातिर
अब शोर उठना चाहिए

सब को फंसा कर लोभ में
जो बने हैं कर्णधार
उस दोगले नेतृत्व को
अब तो समझना चाहिए

जिस दिशा देखो जिधर
जरासंधी फौज है
इक कृष्ण ना कर पायेगा
सभी को, रिपुदमन बनाना चाहिए


कब तलक यूँ चलोगे
शव बने, संसार में
शिव बन हुंकार लें,
फिर,तम भस्म होना चाहिए


उमेश कुमार श्रीवास्तव ३०.११.२०१५