सोमवार, 30 नवंबर 2015

वेदना !

वेदना !




प्रकाश का अतिरेक ज्यूँ ,
अंधत्व देता है सहज
ज्ञान के भी अतिरेक को ,
ऐसा समझना चाहिए

चक्षु होना ही नहीं
प्रमाण, सब दीखने को
तंत्रिकाओं से उसका
जुड़ाव होना चाहिए

ज्ञानेन्द्रियों का अतिरेक ही
विध्वंश का कारक रहा
अतिवादिता से लोक को
सदा ही, बचना चाहिए

अच्छाइयाँ ही सदा
आलोक में हों समाज के
बुराइयों को सदा
पर्दों में रखना चाहिए

पर, दिखता, विपरीत इसके
आज चतुर्दिक समाज में
धन-बुद्धि-बल अतिरेक का
पांसा पलटना चाहिए

इन अतिवादियों के मर्म,
संवेदनाओं से है परे,
शुष्क रेत सम पूरित हृदय पर
अब सागर मचलना चाहिए

वेदना है बस यही
सब जान कर भी मौन हैं
देश-धर्म-जन-जाति खातिर
अब शोर उठना चाहिए

सब को फंसा कर लोभ में
जो बने हैं कर्णधार
उस दोगले नेतृत्व को
अब तो समझना चाहिए

जिस दिशा देखो जिधर
जरासंधी फौज है
इक कृष्ण ना कर पायेगा
सभी को, रिपुदमन बनाना चाहिए


कब तलक यूँ चलोगे
शव बने, संसार में
शिव बन हुंकार लें,
फिर,तम भस्म होना चाहिए


उमेश कुमार श्रीवास्तव ३०.११.२०१५