शनिवार, 9 अक्तूबर 2021

विजयादशमी

विजयादशमी

विजयी हुए थे राम मगर,
वह युग त्रेता बीत गया ၊
दुर्गुण पर्यायी रावण तो
इस युग में आकर जीत गया ၊ ।

हर प्राण हुआ है रावण अब
जो बचे रहे वे रीते हैं ,
सुख बांट रहे हैं रावण अब 
राम तो रीते रीते हैं ၊

खलनायक नाहक रावण  है
हर नायक आज दुर्दान्त यहां ,
था चरित्रत्रयी का, वह अधिनायक
हैं दुष्चरित्रता से ये निष्णान्त यहां ၊

पुतलों पर भले ही चेहरे हम
रावण के आज सजाते हैं ,
राम मुखौटे पहन पहन
रावण का दहन कराते हैं ၊

गौर से जो देखें हम अन्तस
तो रावण को वहां सजाये हैं,
पुतलों में रावण के भीतर
हम ,राम को आज बिठाये हैं ၊

हम विजय कर रहे सुर जन पर,
दुर्जन की जयकार लगाते हैं ၊
विजयादशमी को हम सब मिल,
यूं राम दहन कर आते हैं ၊

यदि यूं ही हम विजयी होते
हर सुर का हनन करायेंगे ၊
फिर ,वह दिन दूर नही साथी ,
हम रावण दिवस मनायेंगे ၊

अब तो जागो हे भारत,
स्वचरित्र सन्धानों तुम  ၊
रावण के अच्छे गुण अपना,
अपने रावण को संहारो तुम ၊

उमेश कुमार श्रीवास्तव ,दिनांक ०८.१०.१९ विजयादशमी , पुरी , उड़ीसा