शनिवार, 30 जनवरी 2016

आज धरा पर आई अपनी नातिन को समर्पित

आज धरा पर आई अपनी नातिन को समर्पित

तेजोमय ,रूप है उसका
तेजस उसकी काया
आज धरा पर धरी कदम है
माँ शारद की छाया
रूप निरख कर है आनन्दित
आत्म धरा का हर कण
सप्त सुरों की बरखा से
भीग रहा है तन मन
सुरश्मि तनया की काया मे
माँ स्वयंम् धरा पर आई
तमस घिरे अंध पथ से
तिमिर मिटाने आई
हरिन्द्रा के वंशज सब
आज खुशी से झूमे
श्यामा-दिनेश के कुटुम्ब में
सुरश्मिप्रभा है घूमे
चंचल चंचल अपने नयनो से
नयनाभिराम सब कर दो
सबके उर मे उतरी तुम जब
उमंग उझासभर दो
उमेश कुमार श्रीवास्तवा १६.०९.२०१५

बुधवार, 13 जनवरी 2016

ग़ज़ल दर्द जब उठता है,

ग़ज़ल


दर्द जब उठता है, कोने से किसी, दिल के
वजूद मेरे कफ़श का, मौंजू नही है लगता

फड़फड़ाते तन से, सिहरन जब है उठती
दरियाई कश्ती में यारों, नाख़ुदा नही है लगता

कारवाँ सफ़र का जब गर्दिशों में डूबा
मेरा हमसफ़र संग, मौंजू नही है लगता

पेशानी पे मेरे, जब जब खिंची लकीरें
गैरों की बेरूख़ी से हों, ऐसा नहीं है लगता

ऐ क़ातिल न बख़्श अब, मेरे नशेमन को
महबूब को वो जब, नशेमन ही अब न लगता

उमेश कुमार श्रीवास्तव १३.०१.२०२१६

मंगलवार, 12 जनवरी 2016

चन्द शेर

चन्द शेर


अधरो से छिपाया दर्द तो नयनों ने कह दिया 
पलके जो बन्द की मैनें चेहरे ने बयां किया ।
** उमेश **

अय चांद इक बार जरा धरती पर आ जा
खुद ब खुद औकात तेरी तुझको पता चल जायेगी I
**उमेश **

अय चांद ना मुस्करा जलन पे मेरे
तू भी कभी जला होगा दाग कहते हैं तेरे

अय चांद तेरे दाग से क्या वास्ता 
तपते हुए तन को चांदनी काफी है ।
**उमेश**


अय चाँद तुझे देख हसरत जगी छूने की 
पर फिर अहसास जगा कि तू कहां औ मैं क्रहां
**उमेश **

हम मानव या दानव हैं ?

हम मानव या दानव हैं ?



हमने चूँसी है धरती , हमने ही सोखा है पानी
और किसी को तको न यारो , हम सब ने ही की है नादानी

पेड़ खा गये पर्वत खाए , बाग बगीचे जंगल खाए
ताल खा गये तलिया खाई नदियाँ मैली कर लाज न आई

खेत खा गये खलिहान खा गये मेहनतकर किसान खा गये
ऐश्‍वर्य भोगने के निमित्त प्राणवायु व , ओज़ोन खा गये

प्रकृति मातु की गोद बैठ, अब जीना ही हम भूल गये
कुच प्रकृति का पान न कर हम, माँ का स्तन खा गये

भोग भोग अरू भोग भोग क्या क्या तू भोगेगा रे मानव
अपनी संतति के निमित्त, क्या "मंगल" छोड़ेगा मानव ?

ताल तलैया नदिया पोखर वन उपवन पर्वत मैदान
श्वेद रुधिर माटी की ख़ुश्बू, जो देते थे खेत खलिहान
आज पुकार रहे हैं सब मिल, ऐ मनु की औरस संतान
बदल राह ले, देर न कर अब,मेट न मनु की पहचान


उमेश कुमार श्रीवास्तव 26.12.15