मंगलवार, 28 दिसंबर 2021

नूतन अभिनन्दन "नए वर्ष"

नूतन अभिनन्दन "नए वर्ष"

नूतन अभिनन्दन "नए वर्ष"  
वही रश्मि औ वही किरण है 
वही धरा औ वही गगन है 
वही  पवन है नीर वही  है 
वही कुंज  है वही लताएँ 

पर्वत सरिता तड़ाग वही हैं 
 वन आभा श्रृंगार वही है 
प्राण वायु औ गंध वही है 
भौरो  की गुंजार वही है 

क्या बदला है कुछ,नव प्रकाश में 
ना ढूंढो उसको बाह्य जगत में 
वहाँ मिलेगा कुछ ना तुमको 
डूबो तनिक अन्तःमन में 

क्या कुछ बदला है मन के भीतर ?
जब आये थे इस धरती पर 
क्या वैसा अंतस लिए हुए हो ?
या कुछ बन कर ,कुछ तने हुए हो !

अहंकार , मदभरी लालसा 
वैरी नहीं जगत की  हैं यें  
यही जन्म के बाद जगी है 
जो वैरी जग को ,तेरा कर दी है 

यदि विगत दिवस की सभी कलाएँ 
फिर फिर दोहराते जाओगे 
नए वर्ष की नई किरण से 
उमंग नई  क्या तुम पाओगे 

जब तक अन्तस  अंधकूप है 
कहाँ कही नव वर्ष है 
अंधकूप को उज्जवल कर दो 
क्षण प्रतिक्षण फिर नववर्ष है 

हर दिन हर क्षण, जो गुजर रहा है 
कर लो गणना वह वर्ष नया है 
हम बदलेंगे  युग बदलेगा 
परिवर्तन ही वर्ष नया है 

गुजर रहे हर इक पल से 
क्या हमने कुछ पाया है 
जो क्षण दे नई चेतना 
वह नया वर्ष ले आया है  

मान रहे नव वर्ष इसे तो 
बाह्य जगत से तोड़ो भ्रम 
अपने भीतर झांको देखो 
किस ओर  उझास कहाँ है तम 

अपनी कमियां ढूढो खुद ही 
औरो को बतलादो उसको 
बस यही तरीका है जिससे 
हटा सकोगे खुद को उससे 

सांझ सबेरे एक समय पर 
स्वयं  करो निरपेक्ष मनन 
क्या करना था क्या कर डाला 
जिस बिन भी चलता जीवन 

कल उसको ना दोहराऊंगा 
जिस बिन भी मैं जी पाऊंगा 
आत्म शान्ति जो दे जाए मुझको 
बस वही कार्य मैं दोहराऊंगा 

 राह यही  नव संकल्पो की 
लाएगी वह  अदभुत हर्ष 
तन मन कि हर  जोड़ी जिसको 
झूम कहेगी नया वर्ष 

आओ हम सब मिलजुल कर  
स्वागत द्वार सजाएं आज 
संकल्पित उत्साहित ध्वनि से 
नए वर्ष को लाएं आज 

   उमेश कुमार श्रीवास्तव

शनिवार, 11 दिसंबर 2021

शेर

मुसाफ़िर शायरी में ये शेर पढ़ा

हमे अपना इश्क तो एकतरफा और अधूरा ही पसन्द है..
पूरा होने पर तो आसमान का चाँद भी घटने लगता है...

जबाब देने को  कीड़ा कुल बुलाया, नज़र है 

चांद आसमां में , न घटता बढ़ता
बस देखनें का अंदाज बदल देती है तू
इश्क इक तरफा ..? है फितूर
पूछ देखो,पथ्थर में आग लगा देती है तू

प्रयास सही था या नहीं ..? कदरदानों से दाद का इंतजार होगा ।
उमेश ११. १२ . १६

शेर

कदर - ए- इश्क आती कहां है हुश्न को 
खुद़ पर गुरुर करता रहा है आज तक
इश्क पूरा कहां है हुश्न बिन
सबब सदियों से रहा इक तरफा - ए- इश्क
       उमेश