मंगलवार, 24 जनवरी 2023

काम , क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार ( मद ) एंव मत्सर : ईर्ष्या: छः विकार

तन हमारा है समन्दर
लहर इसकी,इन्द्रियां हैं
मन भंवर

शनिवार, 21 जनवरी 2023

निराशीः

नहीं चाहिए जग से कुछ भी, नही रही भोग अभिलाषा
नही कामना, इच्छा कोई, काम वासना विस्मृत सारी ।

राग द्वेष के भाव रहे ना, ममता से पहचान न कोई
अहंकार भी सुप्त पड़ा है, न आश्रय जग कण के हूं ।

मैं निराशी: बस प्रभू मेरे, "वयं रक्षामि" कहा है जिसने
गोविन्द मेरे गोपाल मेरे, बस मैं उनका, हैं प्रभु मेरे

रहूं बना बस , ऐसे जग में, करूं वन्दना प्रभु चरणों में 
पाप मेरे, सब पुण्य भी मेरे, कर्म मेरा क्या , सब प्रभु तेरे ।

कर्म मेरे सब अर्पण तुझको, अब तो नइय्या पार लगा दे
आवागमन के सभी द्वार , अब, प्रभु मेरे बन्द करा दे ।

             उमेश कुमार श्रीवास्तव
              भोपाल, दिनांक २१ ०१ २३

सोमवार, 16 जनवरी 2023

अपेक्षाओं का समर

प्रात की सांन्ध्य में
अरुण की प्रथम आभा
प्रदीप्त सी करती मुझे
जग उठती हैं
सब की अपेक्षाएं
आकांक्षाएं 
मुझमें
और मैं 
हो उठता हूं चैतन्य, 
आपूर्ति को
सभी की ईप्साएं
खपानें को 
अपनी समस्त ऊर्जा
जिससे उस्मित कर सकूं
प्राण उनके
जिन्होंने  अर्पित की हैं
अपनी ईप्सा
मुझे, इक आश संग ..
मैं सजग जी उठता हूं
उनका जीवन
अपने जीवन की तरह
कर प्रण 
प्राण कर समर्पित ।

 चाहते सब
हर संवेदना कर दूं समर्पित
भावनाओं का हर पोर
चिन्तन के हर तंतुओं को
जोड़ उनसे
उनके दुःखों को हरता रहूं
अपने सुखों से जब जोड़ना चाहें कभी
तब ही जुड़ूं
अन्यथा, ढूढ़ लूं
अपने सुखों के कणों को
मरुभूमि में ।

गो - धूली से सरोबर
खो तपन
लौटती गेह जब
सान्ध्य को,
चाहती
स्पर्श सलोना
संवेदनाओ से सरोबर
अवलेह बन
दुखते हुए हर पोर में
नव ऊर्जा संचार का
जो आधार हो ।

हा !
कहां ?
सुख !
खोजता क्या प्राण है !
दुःख जगत
वेदना में बसा हर प्राण है 
अपेक्षा ही जोड़ती
इक दूसरे से
तू सुमेरु मनिका 
बस आरम्भ को
ना अपेक्षित 
बस
उपेक्षित प्राण है ।

दिनांक १६.०१.२३
भोपाल










बुधवार, 11 जनवरी 2023

आकर्षण कब होता
जब कोई भा जाता है
जब कोई आ जाता है
इन मतवाली गलियों मे
और झूम जाती कुंज लताएं