रविवार, 31 जनवरी 2021

प्रेम तुम बस बढ़ाया करो

प्रेम तुम बस बढ़ाया करो

 

मैं श्याम हूं श्याम बन कर रहूंगा

बस राधा बनी चाहती तुम रहो
प्यासा सदा प्रेम रस का रहा
मेरी प्यास,  ये तुम बुझाती रहो ၊

ताना व बाना प्रेम के तन्तुओं का
रंजक मेरा प्रेम का ही धनिक है
जो भी है मुझमें बस प्रेम है
प्यार का प्यार तुम बस बढ़ाती रहो ၊

चाहतें प्यार हैं, आदतें प्यार हैं ,
कर्म भी प्यार है , धर्म भी प्यार है
जीवन का मेरे सार ही प्यार है
रस को मेरे तुम सुरभित बनाती रहो ၊

अंजुलि भरो चाहे ,चाहे गोते लगाओ
प्रेम ही मिलेगा, तरल बन के बहता,
मैं हूं तरल ,भीग जाओगी मुझसे
लिपट जाओ न आंचल बचाती रहो ၊

रसी हूं, रसिक हूं ,हूं प्यासा मैं रसिया
रग रग में मेरे बह रहा प्रेम रस है
प्यासा हूं फिर भी, इसी प्रेम रस का
प्रेम को प्रेम से तुम बस बढ़ाती रहो ၊

उमेश कुमार श्रीवास्तव
नव जीवन विहार कालोनी
विन्ध्य नगर , सिंगरौली
दिनांक ०९.०३.२०२१



शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

चन्द शेर (दर्द-ए-दिल

चन्द शेर (दर्द-ए-दिल)
 उनकी इश्क की इस अदा को देखो
दर्द हमें तब्बस्सुम गैरों को बांट देते हैं
 दर्द दिल में जलन आंखों में लिये फिरते हैं
मरीज-ए-इश्क हैं, अश्कबार हुए फिरते हैं
उनकी मगरुरियत नालों पे कान देते नही
इक हम हैं कि पुकारे चले जाते हैं
उनको फिक्र कहां इश्क की बेकरारी की
उनको फुरसत नही अंजुमन के अपने तारों से
नज़रें दर पे कान आहटों पे लगे रहती है
न जाने कब हजूर बेआहट आमद दे दें

 नालों--पुकार
अश्कबार---रोता हुआ
मगरूरियत--अंहकारग्रस्त 
आमद- उपस्थिति
अंजुमन--महफिल
उमेश श्रीवास्तव , जबलपुर ३०.०१.२०१७

गुरुवार, 28 जनवरी 2021

जागो भारत जागो जागो

जागो भारत जागो

जन रो रहा , गण-मन रो रहा
जय हो रही अधिनायको की सदा
रक्त पी रहे हर राह पर जनों की
विधाता बने भाग्य के जो हमारी

दधिचि बनी थी अब तलक ये काया
हर रहनुमा ने हमें ही लुटाया 
नव अधिनायको की गर्जना है भयावह
सिसक है रही मातु भारती अब हमारी

वो भाग्य-विधाता कुन्द-मानस लिए थे
ये रहनुमा तो शातिर चालें लिए हैं
वो बाँटते रहे दिलों को दिलों से
ये तो नुचवा ही देंगे बोटी हमारी 

इक देश को उनने सूबों में बाँटा
अँग्रेज़ों की चालों का ले के सहारा
इनकी फितरत कितनी है शातिर
शहर की गली हर, बट रही अब हमारी

पंजाब सिंधु गुजरात मराठा उठो आज फिर जागो
द्राविण उत्कल बंग बंधु सब तंद्रा अपनी त्यागो
वाणी कर्म चरित्र त्रयी से परखो भाग्य विधाता
फिर सौंपो उसको इस जन गण की रखवारी 

                     उमेश कुमार श्रीवास्तव २९.०१.२०१४

सोमवार, 18 जनवरी 2021

अभिलाषा

अभिलाषा 

अय सूरज
तू तपता क्यूं है ?
यूं शोलों में
जलता क्यूं है ?
आ अंको में
तुझको भर लूं
शीतल वाश
तन हिय मैं कर दूं

रहे अगन न 
बाकी कण भी
सब शोषित
स्व तन मैं कर लूं
कान्ति तेरी,
तुझको ही अर्पित
शीतल कनक बना
तुझको मैं
तुझको, तुझको 
अर्पित कर दूं

मैं अविरल हूं 
जल की धारा
तू जग का है 
पालन हारा
तेरे श्रम का मोल नही तो
क्यूं ना अनमोल 
मै आगत कर लूं

उमेश श्रीवास्तव १९.०१.२०१७

शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

*प्रेम* जीवन मेरा

*प्रेम* जीवन मेरा

 

कोपलें फिर फूट आई

कहना उसे,
दिल में मेरे ၊

सदियों पुराने वृक्ष का 
हूं ठूंठ मैं,
रस मेरा, हर रन्ध्र में,
ना सूखने देता मुझे ၊

छोड़ दो या तोड़ दो
यूं ही रहूंगा,
प्रेम का प्यासा रहा 
प्यासा रहूंगा ၊

निकल अपने रन्ध्र से
फिर से जगूंगा
प्रेम का मकरन्द ही
सुरभित करूंगा ၊

अनुकूल या प्रतिकूल
जैसा भी बना दो
मैं श्याम हूं 
श्याम बन फिर उठूंगा ၊

राधा बनी प्रेम रस
झरसा करो तुम
हरित पुष्पित हो 
पुनः मैं जी उठूंगा ၊

उमेश कुमार श्रीवास्तव 
शिवपुरी , दिनांक : १४.०२.२०२१


शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

मुक्तक

अभी हो सम्मुख पर जाते हो  
मेरे दिल को हुलसाते हो  
फिर कहते ना नीर बहाओ  
तुम भी कितना तड़पाते हो.......उमेश

शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

नव वर्ष अभिनन्दन

सादर अभिनन्दन , 
नववर्ष की नव किरणों से ।

सादर अनुकर्षण (देवता का आवाहन),
नव स्पन्दन का स्पन्दन से ।

सादर अनुरक्षण (पीछे से रक्षा करना),
नव चितवन का नव चिन्तन से ၊

सादर अभिवादन (श्रद्धापूर्वक किया जानेवाला नमस्कार),
नव लक्ष्यों का नव साधन से ।

सादर  संयोजन ,
भूत-अनागत का वर्तमान से ।

सादर अनुवादन (समर्थन),
मित्र रश्मि का शशि किरणों से ।

सादर आह्वाहन ,
हम तुम का, तुम हम से ।

सादर संचालन,
नव दिश को , दृढ़ पग दल से ၊

उमेश कुमार श्रीवास्तव 
शिवपुरी
दिनांक: ३१ . १२.२०२०