शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

शिव स्तुति

शिव स्तुति 

ऊँ हर हर हर हरिराजपते
ॐ बम बम बम अघोराधिपते ।
ऊँ तड़ तड़ तड़ तिमिराधिपते
ॐ डम डम डम गिरिजाधिपते ।

त्रिविधिताप हर हे भोले
मन निश्च्छल कर हे भोले ।
हे जटाधीश हे शशिधारी
मोहपाश हर, हे त्रिपुरारी ।

अबोध बाल मैं, तू भोले
मुझ संग आ,मुझ सा हो ले ।
गति जानू , ना मति मेरी
गति दे मति दे बम बम भोले ।

हे तपस्विने देवाधिपते
हे स्थाणवे गणाधिपते ।
हे रूद्र मेरे भूताधिपते 
ध्यान बसो लोकाधिपते ।

हे उन्मत्तवेष हे प्रजापति
हे रौद्ररुप रुद्राधिपति ।
हर भाव समर्पित है तुझको
मेरे शिव मेरे भावाधिपति ।

हर सांस कहे, बम बम बम बम
हर प्राण बहे, हर हर बम बम ।
अभिलाष जगी,शिवमय जीवन
हर दृष्टि दर्शती, प्रभवे ,नियतम ।

मै क्षुद्र क्षुद्र तू रूद्र रूद्र
मैं अज्ञान कूप तू प्रज्ञाधारी ।
हूं तम पोषक, हे तमनाशक
हर लो हर तम,हे कामारी ।

हर हर बोलूं बम बम बोलूं
शिव शिव बोलूं भोले बोलूं
आन बसो हिय मध्य मेरे
मैं भी जग, शव से शिव हो लूं ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
दिनांक ०१.०३.२०२० , २: ५८ बजे रात्रि
जबलपुर - इन्दौर यात्रा
ओव्हर नाइट एक्स ०



शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

आत्म चिन्तन

आत्म चिन्तन

अनन्त इच्छाओं का
घनघोर वन
भटकता मन
घसिटता तन
लुहलुहान जीवन ।

वर्षावन के
लम्बे तरू सी
गगन छूती इच्छाओं से
सतह पर फैली 
अमर दूब सी
मकड़जाल जैसी 
जड़े फैलाई इच्छाएं
कुछ कटीली 
कुछ मखमली
कुछ हरितिमा भरी
कुछ सूखी तुड़ी मुडी 
इच्छाएं 
सब खड़ी 
सुरसा सी मुख बाये ।

बेचारा मन
भ्रमित सा
हर दिशाओं के 
आकर्षण से बिंधा
सब का
रसिक बनना चाहता ।

है चाहता 
सबका हिय टटोल लूं
है चाहता 
सबके हिय में मैं बसूं।
ना जानता
कामनाएं हैं,वे कामिनी
जो अरझाती ही रही हैं
जगत के हर प्राण को
अपने रुप लावण्य से
मृगमारीचिका सदृष्य ।

जीवन यही, हर प्राण का
है भटकता 
मन के सहारे
बुद्धि भ्रमित 
मोह में
मन - मदन के
रति बनी 
अनुगामिनी बन 
गमन करती बस उस दिशा
मन भागता जिस दिशा को ।

तटस्थ सा 
हूं देखता अब
भोक्ता व भोग्य को
दिग्भ्रमित 
मनु वंशजो के तेज को
ज्ञान के अतिरेक में
प्रज्ञा खो गई
वाचाल मन के सामने 
सारी ऋचाएं 
सो गई ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव ,
दिनांक 28.02.2020 ,07.56 अपरान्ह
ओव्हर नाईट ट्रेन , इन्दौर से जबलपुर यात्रा

बुधवार, 12 फ़रवरी 2020

दिल क्या है ?

दिल क्या है ?

दिल क्या है ?
कोशिकाओं का समुच्चय,
रक्त प्लाजमा व 
कणिकाओं भरा चषक,
अथवा इक व्योम विवर,
आकर्षित करता 
हर इक 
कार्य व्यवहार के
अहसासों को,
कटु मृदु या विभत्स ၊

दिल लोथड़ा नही
मांस पेशियों का,
जाल नही, 
धमनियों,शिराओं का,
न ही आश्रय स्थल है ,
सुचि व कलुषित रुधिर का ၊

दिल इक घरौंदा है ,
अहसासों का,
कोमल नरम मखमली
अहसासों का,
तीखे ,खट्टे-मीठे
सर्द-गर्म , सिहरन लिये
अहसासों का ၊
कुछ खुरदुरे ,भोथरे
कंकड़ीले, पथरीले,
ऊबड़-खाबड़ 
कंटीले अहसासों का ၊

ये अहसास ही
अस्तित्व है
दिल का,
सुख-दुःख ,पीड़ा - व्यथा 
स्नेह - दुलार, 
स्निग्ध प्यार तन्तु हैं,
जिनसे रचा ताना-बाना
निराकारी दिल का ၊
जो आकार ले लेता है
उसी का ,
जो भावना धारणार्थ
उपनिषद होती है उसके ၊

उमेश कुमार श्रीवास्तव
दिनांक १३.०२.२०२०, रात्रि ०९:३९ बजे
जबलपुर _ इन्दौर यात्रा ,नर्मदा एक्स.