शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022

दर्द इक कशक

दर्द इक कशक

क्यूँ दर्द उन्हे ही मिलता है, जो सजदे में रहते हैं
क्यूँ  आती खुशियाँ  हिस्से उनके, जो गम बाँटते फिरते हैं

क्यूँ  परेशान वो रहता है, जो सब की सोच रहा होता
क्यूँ  मज़े वही है करता,जो निज हित की सोच रहा होता

क्यूँ अक्ल हार जाती आ कर,धन की गरिमा के आगे
क्यूँ सिमट रही है सज्जनता , दुर्जन मजमे के आगे

क्यूँ  कामयाबी का मतलब, कुछ अलग दिखाई पड़ता है
क्यूँ ईमानदारी का मतलब , बेवकूफ़ निकाला जाता है

क्यूँ दुनिया इतनी बदल रही कि घर सराय सा लगता है
क्यूँ खुद का वजूद भी अब खुद को, अबूझ बेगाना लगता है

रिस्ते नाते सब बदल गए ना कोई किसी का सगा रहा
हम पहुँच गये हैं किस युग में ? क्या कोई मुझे बता रहा ?

उमेश कुमार श्रीवास्तव(०१.०४.२०१६)