शुक्रवार, 28 मई 2021

शेर

जिन्दगी का हरदम, रहा, अलग ही फ़लसफा,
हद में रह नहीं सकते , बाहर निकल नहीं सकते ၊

जो जाग जाये खल्क ख़ुदा की रज़ा समझो
अभी तक तो यहां सब ने , सो कर गुजारी है ၊

तू मांगता क्यूं है , ख़ुदा तुझमें घर किये बैठा
ज़रा मानिन्द खुद के ही ,नज़र फेर जो तू ले ၊

....उमेश , शिवपुरी २८.०५.२१

गुरुवार, 20 मई 2021

वह एकाकी उड़ता वक
तकता, जल बिन, सूनी धरती
चला जा रहा उड़ता तकता
शुभ्र परों व व्यथित दृगों से,
म्लान धरा को  ၊

जल बिन सूनी हर काया है ,
पाषाण सदृष्य फिर हर माया है,
स्पन्दन है , पर रस विहीन सभी
जीव चाराचर सम्पूर्ण धरा पर ၊

उड़ा जा रहा टकटकी लगाये
मृदुता कहीं नजर न आये
सूखी निर्झरणी सूखे ताल
गिरि उपवन सब विह्वल





सोमवार, 17 मई 2021

रुबाई

चश्मो में चमकी तब्बस्सुम जो देखी 
मेरी जिंदगी मुस्कुराने लगी
रुखसार पे तेरी हया जो  देखी 
ये  जिंदगी  गुनगुनाने  लगी
लबो की तेरी गुलाबी ओ रंगत  
मुझमें फिर जुनू है जगाने लगी
क्या कहूँ क्या कहूँ क्या कहूँ ऐ जानम 
ख्वाबो में भी तू जो जगाने लगी
                                                                    उमेश श्रीवास्तव

रसराज "रति"(श्रृंगार

रसराज "रति"(श्रृंगार)

हम हास करें या क्रोध करें,
भयभीत रहें या उत्साह भरें,
विस्मित हो  कर बस शोक करें,
जुगुप्सीत हो कर निवेद करें ,
पर, भूल सके क्या रति रस को,
रसराज यही, आनन्द भरे ၊

जग कारक रसराज रति
मोहक,उर्जित,उन्माद जनक
पालक , मारक ,उद्धारक , रति
है ,अजर अमर अविनाशक ၊

 
आगार नहीं, जग कण कण को
श्रृंगार बिना इस वसुधा  पर
रसराज बिना रस हीन धरा
हर प्राण लगे मरु रज कण से ।

मन्मथ मथे मथनी सम
निर्जीव,सजीव सभी कण को
मकरंद बने, सुरभित चहुंदिश
अजर रहे रस भीगत जो ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव
इन्दौर , दिनांक १८. ०५ . २०२०

शनिवार, 15 मई 2021

दो मुक्तक

कौन कहता फूल बड़े नाजुक होते हैं
मैने देखा है उन्हे धूप में तप मुस्कुराते हुए।

झुकना तहजीब मेरी , मजबूरी नही ,
गुरुर पाल तू , खुद को, ज़मीदोज करता क्यूं है ၊
.......उमेश

शनिवार, 8 मई 2021

दो मुक्तक

कौन कहता फूल बड़े नाजुक होते हैं
मैने देखा है उन्हे धूप में तप मुस्कुराते हुए।

झुकना तहजीब मेरी , मजबूरी नही ,
गुरुर पाल तू , खुद को, ज़मीदोज करता क्यूं है ၊
.......उमेश