जिन्दगी का हरदम, रहा, अलग ही फ़लसफा,
हद में रह नहीं सकते , बाहर निकल नहीं सकते ၊
जो जाग जाये खल्क ख़ुदा की रज़ा समझो
अभी तक तो यहां सब ने , सो कर गुजारी है ၊
तू मांगता क्यूं है , ख़ुदा तुझमें घर किये बैठा
ज़रा मानिन्द खुद के ही ,नज़र फेर जो तू ले ၊
....उमेश , शिवपुरी २८.०५.२१